Ranchi: झारखण्ड आन्दोलन के प्रारम्भिक दौर के छात्र – युवा उभार की अगली पांत के सक्रियकर्मी , संस्कृतिक प्रचारक – हरफनमौला कलाकार व तीक्ष्ण कार्टूनिष्ट रहे वरिष्ट झारखण्ड आन्दोलनकारी तथा सोशल एक्टिविष्ट व्यक्तित्व बशीर अहमद के दूसरे स्मृति दिवस पर उन्हें याद किया गया. वे एआइपीएफ तथा भाकपा माले के अगुवा भी रहे. कोरोना काल की पिछली लहर में उनका निधन हो गया था.
भाकपा माले मुख्यालय में आयोजित स्मृति सभा में उन्हें वाम दलों तथा विभिन्न सामाजिक संगठनों के प्रतिनिधियों ने उन्हें श्रद्धांजली दी.
भाकपा माले राज्य सचिव जनार्दन प्रसाद ने बशीर स्मृति सभा का सार प्रस्तुत करते हुए कहा बहुआयामी प्रतिभा के बशीर जी एक सामाजिक पुल थे और उनके असामयिक निधन ने माले के साथ साथ प्रदेश की जन आन्दोलनकारियों धारा काफी आघात पहुंचा है . उनके अधूरे कार्य हमारी जिम्मेवारी है.
जल जंगल ज़मीन व झारखण्ड की सामाजिक एकता के मुद्दों पर बशीर जी के साथी रहे वरिष्ठ आदिवासी बुद्धिजीवि प्रेमचन्द मुर्मू ने उन्हें एक हरफनमौला सच्चा सामाजिक आन्दोलनकारी बताते हुए कहा कि झारखंडी एकता की एक सशक्त आवाज़ थे . आज जब संविधान पर सीधा हमला किया जा रहा है बशीर जी जैसों का न होना हमें काफी सालता है.
उनके साथ कई दशकों तक सामाजिक सक्रियता निभाने वाले वरिष्ठ सामाजिक कार्यकर्त्ता कुमार वरुण ने उनके संस्मरणों को साझा करते हुए कहा कि झारखण्ड कि चुनौतियों की गहरी समझ थी. जिसके लिए जीवन के अंतिम दिनों में वामपंथ को अपनाकर अपनी शारीरिक सीमा से भी आगे बढ़कर सक्रीय रहे.
एक्टू झारखण्ड महासचिव शुभेंदु सेन ने कहा कि वे महेंद्र सिंह की भांति अपने बहुमुखी संघर्षशील व्यक्तित्व का निर्माण करते हुए व्यापक सामाजिक मान्यता पायी. वे उन्हीं की भांति सामाजिक प्रयोगधर्मी भी रहे और इसी के तहत भाकपा माले से जुड़े.
मुस्लिम मजलिस उलेमा झारखण्ड के केन्द्रीय अध्यक्ष मुफ़्ती अब्दुल्ला अज़हर कासमी ने उन्हें झारखंडी सामाजिक एकता की बेमिशाल धरोहर बताते हुए हेमंत सोरेन सरकार से राज्य सम्मान देने की मांग की.
झारखण्ड जन संस्कृति मंच के युवा आदिवासी सोशल एक्तिविष्ट जेवियर कुजूर ने कहा कि उनकी सामाजिक सक्रियता के साथ साथ कलाकर्म में भी पूरी तरह से झारखंडियत झलकता था. उनके बनायी अनेको कलाकृतियाँ इसका जीवंत उदहारण हैं . वे सदा वैचारिक स्पष्टवादी रहे.
मासस के सुशांतो मुखर्जी ने कहा कि बशीर जी के विचारों और कर्म में झारखण्ड के जल जंगल ज़मीन और यहाँ की ज़मीनी सांस्कृतिक पहचान का सवाल गहराई के साथ मौजूद था.
फोरम के युवा अगुवा नदीम खान ने कहा कि वे झारखण्ड नवनिर्माण में युवाओं – छात्रों को आगे बढ़ाने के लिए ‘ लहू बोलेगा ‘ जैसे सामाजिक स्वास्थ्य के सामाजिक अभियान मजबूती दी. वे लाल हरे की एकता ( झारखंडियत – मुस्लिम व वामपंथ की एकता )के वर्तमान समय में ज़मीनी आवाज़ रहे.
स्मृति सभा को माले के भुवनेश्वर केवट , इप्टा के इप्तिखार अहमद , ऐपवा की ऐती तिर्की इत्यादि ने भी बशीर जी के प्रेरक प्रसंगों को रेखांकित किया. बशीर जी के दोनों बेटों ने भी अपने पिता द्वारा दी गयी प्रेरणाओं की चर्चा की.
सञ्चालन करते हुए फोरम व जसम के अनिल अंशुमन ने बशीर जी के कार्टून प्रतिभा को प्रख्यात कार्टूनिष्ट आर के लक्षमण परम्परा की कड़ी बताते हुए कहा कि उनके कार्टून पात्र सदा ठेठ नागपुरी बोलते हुए दीखते हैं और उनके सारे विषय बेहद प्रासंगिक रहे
सभा में बशीर जी द्वारा पिछले कोरोना काल में बनाये कार्टूनों को मिली व्यापक जन प्रसिद्धि कि भी चर्चा हुई.
स्मृति सभा से मांग की गयी कि झारखण्ड सरकार वरिष्ठ झारखण्ड आन्दोलनकारी बशीर जी को राज्य कलाकार का सम्मान दे . साथ ही बशीर जी की सभी कलाकृतियों का सम्पूर्ण संग्रह निकालने वाली कमिटी का भी गठन किया गया . जिसके प्रमुख के रूप में प्रेमचचंद मुर्मू , कुमार वरुण , वाल्टर कंडूलना व जेवियर कुजूर इत्यादि को जबाबदेही दी गयी।