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बिहार चुनाव: बिहार में “का बा” का जवाब “बिहार में ई बा”

पिछले दिनों लॉकडाउन के दौरान बड़े-बड़े शहरों से पलायन कर रहे मजदूरों का दर्द बयां करता मनोज बाजपेयी का एक पॉपुलर रैप सॉन्ग आया था- बंबई में का बा ,इसके बाद एक और भोजपुरी गाना आता है- बिहार में का बा यह गाना सोशल मीडिया पर छप्पड़ फाड़कर वायरल होता है।इस गाने में बाढ़, बेरोजगारी से लेकर किसानों की समस्या को उठाती हैं गायिका नेहा सिंह राठौर। नेहा अपने गानों के ज़रिये आज सोशल मीडिया की सेंसेशन बन चुकी हैं। लेकिन इसके बीच आपको हम बिहार में का बा को अलग तरीके से बताने जा रहे है। जिसने बढ़ाया देश-विदेश में बिहार का गौरव। बिहार से ऐसे ऐसे प्रतिभा निकले जिन्हे पुरे दुनिया आज भी करता है सलाम। अपने पूर्वजो के गौरव को बढ़ा रहे वर्तमान में ये सभी बिहारी।

पटवा टोली-

जिन्हें देश में बिहार की प्रतिभा को लेकर किसी तरह का शक है, उनके लिए ये गांव आईना की तरह है। ये गांव कभी बुनकरी के काम के लिए जाना जाता था। काफी पिछड़ा हुआ था, पर पिछले 28 सालों से इस गांव के लड़के कुछ ऐसा कमाल कर रहे हैं, जो संभवत: देश के दूसरे गांवों में देखने को नहीं मिलता। बुनकरों के इस गांव से हर साल दर्जनों छात्र आईआईटी और एनआईटी के लिए चुने जाते हैं। इतना ही नहीं दुनिया के 12 देशों में यहां के आईआईटी पास आउट बढ़िया नौकरियों में हैं।

कहां है ये गांव?

पटवा टोली नाम का ये गांव नक्सल प्रभावित गया जिले में है। हालांकि, ये गांव भी बिहार के अन्य सामान्य गांवों की तरह ही है, लेकिन यहां से आईआईटी में चुने गए छात्रों ने इसे एक अलग पहचान दे दी है। पिछले 28 सालों से यहां के छात्र आईआईटी के लिए चुने जा रहे हैं। इस साल भी गांव के कई स्टूडेंट्स ने जेईई एडवांस्ड क्लीयर कर आईआईटी जैसे संस्थानों में दाखिला पाया है। गांव वालों की माने तो अब तक करीब 300 से ज्यादा छात्र छात्राओं गांव में पढ़ाई करके आईआईटी और एनआईटी जैसे इंजीनियरिंग संस्थानों में पहुंच चुके हैं।
कभी नक्सल प्रभावित था ये गांव
गया जिले का ये गांव कभी नक्सल और जातीय हिंसा से प्रभावित था। यहां के पटवा, बुनकरी का काम करते हैं। ये अन्य पिछड़ी जाति में आते हैं। पहली बार 1992 में इस गांव से एक छात्र जितेन्द्र ने आईआईटी में दाखिला पाया था। ख़ास बात ये है कि आईआईटी में एडमिशन पाने वाले अधिकांश छात्रों के माता-पिता या तो कम पढ़े-लिखे हैं या पूरी तरह से निरक्षर हैं। अधिकांश को आईआईटी का मतलब भी नहीं पता है।

अभयानंद, आनंद कुमार , आरके श्रीवास्तव-

अब हम बात कर रहे उन शिक्षको के बारे में जो अपने शैक्षणिक कार्यशैली से लाखो युवायो के रोल मॉडल बन चुके है। बिहार के चर्चित शिक्षक अभयानंद, आनंद कुमार और आरके श्रीवास्तव को कौन नही जानता, जो प्रत्येक वर्ष आर्थिक रूप से गरीब स्टूडेंट्स को इंजीनियर बना उनके सपने को पंख लगा रहे है। ये तीनो बिहार के अनमोल रत्न राजनीती से रहते है काफी दूर। जब जब बिहार में चुनाव आता है तो लोगो के बीच ये चर्चा जरूर होता है की बिहार के ये तीनो चर्चित चेहरे भी चुनाव लड़ सकते है, परन्तु ये सभी शिक्षक राजनीती से हमेशा दुरी बनाये रखते है, इनका कहना है की समाज सेवा बिना राजनीती में आये हुये भी किया जा सकता है, ये सभी शिक्षक ने आर्थिक रूप से गरीब स्टूडेंट्स को आईआईटी, एनआईटी, बीसीईसीई ,एनडीए प्रवेश परीक्षा सफ़लता दिलाकर बेहतर राष्ट्र निर्माण में अपना योगदान दे रहे है ।

बिहार देशभर में अनूठे एकेडमिक्स की वजह से भी चर्चित है। अभयानंद और आनंद कुमार ( Anand Kumar) ने गरीब बच्चों को आईआईटी (IIT) जैसे संस्थानों में भेजकर ऐसी लकीर खींच दी है कि पूरी दुनिया उनके काम को सलाम करती है। एक मैथमेटिक्स गुरु आरके श्रीवास्तव (RK Srivastava) भी गज़ब तरीके से बच्चों को पढ़ाते हैं। आरके चुटकले और कबाड़ों के जरिए से खेल-खेल में बच्चों को गणित की मुश्किल पढ़ाई करवाते हैं। कबाड़ को जुगाड़ से खिलौने बनाकर प्रैक्टिकल में यूज करते हैं। वो सामाजिक सरोकार से गणित को जोड़कर, सवाल हल करना बताते हैं। आरके 52 तरीके से पाइथागोरस प्रमेय (Pythagoras theorem) को सिद्ध कर दुनिया को हैरान कर चुके हैं।

वो 450 से ज्यादा बार फ्री नाईट क्लासेज चलाकर भी सुर्खियां बटोर चुके हैं। उनकी क्लास में स्टूडेंट पूरी रात 12 घंटे गणित की पढ़ाई कर चुके हैं। जो खुद मैं हैरान करने वाली बात है। लोग बताते हैं कि वह भी सुपर 30 की तरह भी गरीब स्टूडेंट को इंजीनियर बनाते हैं। इसके बदले में मात्र एक रुपए गुरुदक्षिणा लेते हैं। आकड़ों के अनुसार अभी तक 540 आर्थिक रूप से गरीब स्टूडेंट्स को आईआईटी,एनआईटी, बीसीईसीई प्रवेश परीक्षा में सफलता दिलाकर उनके सपनो को पंख लगा चुके है। कई लोग दावा करते हैं कि आरके, सुपर 30 के आनंद कुमार की परंपरा के टीचर हैं।

गरीब परिवार में जन्में बिक्रमगंज रोहतास के आरके श्रीवास्तव का जीवन काफी संघर्ष से भरा रहा। जिससे लड़ते हुए वह अपनी पढ़ाई पूरी की। लेकिन, टीबी की बीमारी के कारण आईआईटी की प्रवेश परक्षा नहीं दे पाए। बाद में ऑटो चलने से होने वाले इनकम से परिवार का भरण-पोषण होने लगे।

रामानुजन और वशिष्ठ नारायण सिंह को आदर्श मानने वाले आरके श्रीवास्तव बाद में कोचिंग पढ़ाने लगे। गणित के लिए इनके द्वारा चलाया जा रहा निःशुल्क नाईट क्लासेज अभियान पूरे देश मे चर्चा का विषय बना हुआ है। इस क्लास को देखने और उनका शैक्षणिक कार्यशैली को समझने के लिए कई विद्वान उनके इंस्टीट्यूट आ चुके हैं।

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