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नये नागरिकता कानून से जनजातिय अस्तित्व को खतरा प्रधुत बिक्रमा

त्रिपुरा राजा प्रधुत बिक्रमा ने साझा की आदिवासियों की पीड़ा

दिल्ली में झारखंड छात्र संघ व आमया संगठन के अध्यक्ष एस.अली से त्रिपुरा के 186 वें राजा प्रधुत बिक्रमा मानिक्य देव
बर्मन से दिल्ली में मुलाकात पर उन्होंने नागरिकता संसोधन कानून के बारे में बताया :

त्रिपुरा के कुछ भाग छठी अनुसूची के अंतर्गत आते हैं, लेकिन जनजातीय बहुल इस राज्य में नागरिकता संशोधन कानून का जोरदार विरोध हो रहा है. इनमें सबसे अधिक विरोध त्रिपुरा ट्राइबल ऑटोनॉमस डिस्ट्रिक्ट काउंसिल (टीटीएडीसी) में हो रहा है. साथ ही लंबे समय से चली आ रही अलग प्रदेश ‘तिप्रालैंड’ की मांग फिर से उठाई जा रही है.विरोध का आधार जनजातीय पहचान को इस कानून से होने वाला खतरा है. जिससे हमारी संस्कृति, भाषा, भूमि, आरक्षण, रोजगार में संकट उत्पन्न होगी।

एनपीआर में पूछे गये गैर जरूरी सवालों को जनजाति समाज देने में सक्षम नही है 90%आदिवासियों को उनके माता-पिता का जन्म तिथि पता ही नही, ऐसे में वो सभी संदिग्ध हो जाएंगे फिर एनआरसी लाकर उनको नागरिकता से वंचित कर उनके भूमि और सम्पत्ति को सरकार द्वारा कब्जा में ले लिया जाएगा और डीटेंशन सेंटर में डाल दिया जाएगा। सीएए कानून के तहत पांच वर्ष बाद इन्हें यह बताना पड़ेगा कि हम पाकिस्तान बंगलादेश के सताये हिन्दू है तब जाकर इन्हें भारतीय नागरिकता दी जाएगी।

केन्द्र सरकार के इन निर्णयों का
विरोध करने वाले दलों में इंडिजिनस पीपुल्स फ्रंट ऑफ त्रिपुरा (आईपीएफटी) प्रमुख है, जो राज्य की भाजपा सरकार में साझीदार भी है. दल के नेताओं का कहना है कि वे इस कानून के खिलाफ हैं और उन्हें अपना एक अलग प्रदेश चाहिए.Tripura Citizenship Actl
Protest पीटीआईइसके साथ ही कई जनजातीय, राजनीतिक और सामाजिक दल इसके खिलाफ साथ आ गए हैं और ‘जॉइंट मूवमेंट अगेंस्ट सिटिज़नशिप अमेंडमेंट एक्ट’ के बैनर तले इकठ्ठा होकर इसका विरोध कर रहे हैं.
उन्होंने कहां कि ‘बांग्लादेश से बड़ी संख्या में लोगों की आमद के चलते वैसे भी हमारा समुदाय गिनती का ही बचा है. हम नहीं चाहते कि इस कानून के चलते स्थिति और ख़राब हो जाये.’कई अन्य जनजातीय संगठन भी इस बिल के खिलाफ खड़े हैं. उनका मानना है कि इस कानून के आ जाने के बाद सीमा पार से घुसपैठ और बढ़ जाएगी. वे तर्क देते हैं कि त्रिपुरा पूर्वोत्तर का एकमात्र ऐसा राज्य है, जहां पूर्वी पाकिस्तान (अब बांग्लादेश) से गैर-आदिवासियों की बड़ी आबादी आने के चलते आदिवासी आबादी अल्पसंख्यक हो गई है.
इस कानून के खिलाफ़ हमलोगों ने भी सुप्रीम कोर्ट में याचिका दायर कर रखी है जिसपर सुप्रीम कोर्ट ने अलग से सुनवाई की बात कहीं है।

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