मुजफ्फर हुसैन संवाददाता, रांची
रांची:- कोविड-19 के समय हम सभी ने लाखों लोगों का पलायन देखा। आखिर यह कौन से लोग थे जो इतनी बड़ी संख्या में वापस लौट रहे थे। असल में वे झारखण्ड प्रदेश के वे लोग थे जिनको अपने गांव पास के कस्बों और छोटे शहरों में काम नहीं मिलता था। जिस कारण हमलोग बहुत पलायन होते हुवे बेरोजगार को घर वापस आते हुए देखा। यह संकट केवल सार्वजनिक और पर्यावरणीय अस्वास्थ्य अर्थव्यवस्था तक सीमित नहीं है। हम जो देख रहे हैं वह आधुनिकता के संकट और व्यापक पैमाने पर उसकी पूंजीवादी व्यवस्था के संकट का एक सच है। संकट से गुजरने के बाद हम हमेशा की तरह काम पर वापस लौटने में शायद वैसे सक्षम नहीं होंगे। हैरत अंगेज बात यह है कि कोविड महामारी में पलायन सबसे बड़ी मुद्दा है। सरकार को निश्चित रूप से व्यापक रूप से इस और सोचना है कि अपने निशान छोड़ जाएगा। साथ ही कुछ सबक भी दे जाएगा। अब ये हम सब पर निर्भर है कि हम इस आपदा से कितना सबक लेते हैं। हमें सामाजिक सरोकार, परस्पर अभिवादन के ढंग, जीवन शैलियाँ, जीवन मूल्य, फैक्ट्रियों और दफ्तरों की कार्य प्रणालियाँ, शिक्षा के तौर तरीके, देश की स्वास्थ्य सेवाएं, प्रकृति और पर्यावरण के प्रति दृष्टिकोण, वैश्विक राजनीतिक समीकरण, इन सभी पर पुनर्विचार करना होगा। दुनिया भर के देशों उनकी अर्थव्यवस्थाओं और रोजगारों पर बड़ा भयावह प्रभाव पड़ा है। ऐसी हालत में जबकि विश्वा आर्थिक मंदी की ओर अग्रसर है। उसकी दूरगामी परिणामो को सोचते हुए हमें पुनः भारतीय सनातन जीवन शैली की तरफ लौटना होगा। जिसमे भौतिकता की कोई जगह नहीं है।