रिपोर्ट: नेहाल अहमद।
किस्को/लोहरदगा:जिले के अति नक्सल किस्को प्रखंड क्षेत्र के पाखर पंचायत अंतर्गत घनघोर जंगलों के बीचो बीच बसा डहरबाटी गांव में आदिम काल से लगभग दस परिवार निवास करते आ रहे हैं जिन्हें आज तक नेताओं व अधिकारियों ने शुरू से ही विकास के नाम पर ठगने का काम किया है। यही वजह है कि आज के बदलते भारत में सरकारी योजनाओं का मूर्त डहरबाटी गांव में दूर दूर तक दिखाई नहीं देता है। बात करें डहरबाटी गांव में सरकार की जनकल्याणकारी योजनाओं का तो गांव वालों को शुद्ध पेयजल हेतु एक चापानल मुहैया नहीं कराया गया है बाकी अन्य विकास योजनाओं के बारे में उक्त गांव वालों को कल्पना करना भी सपना लगता है। गांव में पहुंच पथ जोखिम भरा है जिससे गर्मी के मौसम में तो किसी तरह सफर करना थोड़ी बहुत राहत महसूस होता है लेकिन जैसे ही बरसात का मौसम आगमन होता है गांव वालों को अपने गंतव्य तक पहुंचने में खतरों से खाली नहीं होता है। लोग मौत को गले लगाकर किसी तरह अपने घर व रोजमर्रा के लिए इधर उधर जाते-आते हैं। गांव में पेयजल की बड़ी संकट है लोग डहरबाटी नाला में बहने वाली दूषित पानी को मजबूरन अपनी हलक भिगाने के लिए स्तेमाल करते हैं।
चारो ओर से घनघोर जंगलों के बीच बसा डहरबाटी गांव के लोगों को न जाने किसकी नजर लग गई है जो कि सड़क, पेयजल जैसी मूलभूत सुविधाएं आज तक महज एक सपना बना हुआ है। गांव वालों का कहना है कि दर्जनों नेता एवं अधिकारी आकर आश्वासन की झूठी पोटली थमाकर चले जाते हैं, विकास की बड़ी बड़ी बातें बोलकर हम मजलूम गांव वालों को नेता से लेकर सरकारी महकमा ने सिर्फ और सिर्फ विकास के नाम पर झूठा तसल्ली देने का काम किया है। डहरबाटी के मजलूमों की ज़बानी सुनकर ऐसा लगता है कि इन गरीब असहाय बेवस परिवार वालों के लिए सरकार है ही नहीं यही वजह है कि इस माडल भारत में आज भी सरकारी लाभ से वंचित हैं। बात करें लोहरदगा विधानसभा क्षेत्र के चुने हुए जनप्रतिनिधियों की तो वोट के समय इनके दरवाजे तक किसी न किसी तरह दस्तक देने पहुंच जाते हैं परंतु वोट की गिनती खत्म होते ही इन गांव वालों से सभी जीते हुए नेताओं का अपने कार्यकाल तक पुरी तरह से रिश्ता कट जाता है। डहरबाटी गांव के लोग नेताओं के रवैये से काफी खफा हैं। गांव वालों की माने तो आजादी के बाद से आज तक सभी नेताओं और अधिकारियों ने इन्हें झूठे सपने दिखाते रहे हैं। गांव में जाने वाली एकमात्र सड़क, डहरबाटी नाला, पेयजल की बड़ी संकट होना अपने आप में नेताओं और अधिकारियों के लिए जिंदा सुबूत बनकर सवाल पूछ रही कि कब होगा हमारी कायाकल्प, आखिर किया कसूर है हमारी जो हमे सरकार की महत्वाकांक्षी योजनाओं से अछूता रखा गया है इन सभी सवालों के जवाब अब तक न तो किसी विधायक, मंत्री, सांसद और न ही किसी अधिकारी ने दिया है यही वजह है कि आज भी डहरबाटी गांव एवं डहरबाटी नाला नेताओं और अधिकारियों के लिए इन सभी सवाल एक अबूझ पहेली बना हुआ है।