नई दिल्ली युवा मतदाताओं की बेरुखी ने बढ़ाई भाजपा की मुश्किलें
पिछली बार भी 3 सीट से करना पड़ा था संतोष
13 महीने में पार्टी को छह राज्यों में करना पड़ा हार का सामना
विस्तार
तीन सौ सांसद, 50 केंद्रीय मंत्रियों की फौज के बाद गृहमंत्री अमित शाह, अध्यक्ष जेपी नड्डा जैसे दिग्गजों की 5000 छोटी-बड़ी रैलियां, सभाएं और ताबड़तोड़ रोड शो। इसके बावजूद भाजपा देश की राजधानी में आम आदमी पार्टी से मुकाबला तो दूर, उसकी चौथाई गिनती भी नहीं छू पाई। लोकसभा चुनाव में प्रचंड जीत के बावजूद विधानसभा चुनाव में लगातार मिल रही पराजय से भाजपा नेतृत्व सकते मेंं है।
बीते करीब 13 महीने में पार्टी को छह राज्यों में हार का सामना करना पड़ा। निराशाजनक हार के बाद पार्टी के रणनीतिकार मानते हैं कि चुनाव में कांग्रेस के लगभग विलुप्त हो जाने और पार्टी के महज राष्ट्रवाद के मुद्दे पर चुनाव में उतरने की रणनीति भारी पड़ गई। शाहीन बाग जैसे मुद्दे पर जहां मुसलमान वोटों का आप के पक्ष में जबर्दस्त ध्रुवीकरण हुआ, वहीं इसके उलट राष्ट्रवाद के मुद्दे पर हिंदू मतों का समानांतर ध्रुवीकरण नहीं हो पाया। खासतौर पर लोकसभा में पार्टी को कोर वोट के अतिरिक्त मिले 20 फीसदी वोट केजरीवाल सरकार की मुफ्त योजनाओं के साथ खड़े हो गए।
नहीं चल रहा राष्ट्रवाद का नारा
भाजपा के लिए मुश्किल यह है कि राज्यों में राष्ट्रवाद का नारा नहीं चल पा रहा। वह भी तब जब लोकसभा चुनाव के बाद पार्टी ने अनुच्छेद 370 खत्म किया तो इसी बीच सुप्रीम कोर्ट में अयोध्या विवाद पर राम मंदिर के पक्ष में ऐतिहासिक फैसला आया। चुनाव बाद ही मोदी सरकार नागरिकता संशोधन कानून लाई और दिल्ली चुनाव में इसके खिलाफ शाहीन बाग में अल्पसंख्यकों के प्रदर्शन को मुख्य मुद्दा बनाया।
युवा वोटरों का नया मिजाज
कभी भाजपा की ताकत रहे युवा मतदाता का नया मिजाज ही अब पार्टी के लिए परेशानी का सबब बन रहा है। पार्टी ने जिन राज्यों में लोकसभा चुनाव में प्रचंड प्रदर्शन किया, उन्हीं में विधानसभा चुनावों में पार्टी के मतों पर भारी गिरावट आ गई। इस क्रम में लोकसभा चुनाव के मुकाबले हरियाणा में 22 फीसदी, झारखंड में 17 फीसदी तो दिल्ली में करीब 20 फीसदी की गिरावट आई। रणनीतिकारों का कहना है कि युवा लोकसभा चुनाव में तो मोदी के नाम पर पार्टी के साथ होते हैं, मगर विधानसभा चुनाव में इनकी पसंद अलग हैं।
महज मोदी के नाम पर नहीं बनेगी बात लोकसभा में ब्रांड मोदी का विकल्प नहीं है, मगर विधानसभा में मतदाताओं का बड़ा वर्ग स्थानीय मुद्दे और चेहरे को कसौटी पर कसता है। लोकसभा से ठीक पहले भाजपा ने जिन तीन राज्यों मप्र, राजस्थान और छत्तीसगढ़ में सत्ता गंवाई। उन्हीं राज्यों में लोकसभा चुनाव में महज ब्रांड मोदी के भरोसे पार्टी ने विपक्ष का करीब सूपड़ा साफ कर दिया। हरियाणा, झारखंड, महाराष्ट्र में पार्टी के सीएम ही परेशानी का कारण बने, तो दिल्ली में कद्दावर स्थानीय नेता।
इसलिए चिंता में है पार्टी…
2014 के लोकसभा चुनाव के बाद विधानसभा में भी ब्रांड मोदी का जलवा था। तब लोकसभा चुनाव के मुकाबले हरियाणा, झारखंड सहित कई राज्यों में पार्टी के मत प्रतिशत में 5% की कमी आई थी। अब 2019 के चुनाव के बाद राज्यों में यह गिरावट 22% तक जा पहुंची।