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IIT के छात्र से आईटी कमिश्नर और फिर दिल्ली के मुख्यमंत्री, बेहद दिलचस्प है अरविंद केजरीवाल का सियासी सफर


दिल्ली विधानसभा चुनावों ( 2020) के परिणाम आने के बाद जिसका नाम सबसे ज्यादा छाया हुआ है, वह कोई और नहीं बल्कि दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल  है. आम आदमी पार्टी (आप) के संयोजक अरविंद केजरीवाल आज देश के दिग्गज नेताओं में गिने जाने लगे है. केजरीवाल का तीसरी बार दिल्ली का मुख्यमंत्री बनना तय है. साल 2015 की तरह ही इस बार के विधानसभा चुनावों में भी आप सबसे बड़ी पार्टी बनकर उभरी है.

दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल पहली बार अपना पांच साल का कार्यकाल पूरा करने जा रहे है. इसके साथ ही वह तीसरी बार दिल्ली के मुख्यमंत्री पद की शपथ लेने के लिए तैयार है.
केजरीवाल के मार्गदर्शन में पिछले पांच वर्षों के दौरान शिक्षा और स्वास्थ्य सेवा क्षेत्र को बहुत हद तक सुधारा गया, जो कि आप की जीत का प्रमुख कारण समझा जा रहा है. इसके अलावा केजरीवाल सरकार ने महिलाओं को सौगात देते हुए डीटीसी बस की सवारी मुफ्त कर दी. जिससे पार्टी का प्रदर्शन और बेहतर हो गया
केजरीवाल एक आईआईटीएन ​​और पूर्व भारतीय राजस्व सेवा (IRS) अधिकारी हैं. पूर्व जॉइंट कमिश्नर (इनकम टैक्स) अरविंद केजरीवाल का राजनीति में प्रवेश काफी चर्चित रहा. आप के संस्थापक और राष्ट्रीय संयोजक केजरीवाल को साल 2006 में ‘एमर्जेंट लीडरशिप’ के अवार्ड से नवाजा गया था. देश की जनता को भ्रष्टाचार से लड़ने और सूचना के अधिकार (आरटीआई) के लिए प्रोत्साहित करने के लिए विशेष पहचान मिली.

साल 2011 में केजरीवाल ने जानेमाने सामाजिक कार्यकर्ता अन्ना हजारे (Anna Hazare) और अन्य के साथ मिलकर ग्रुप इंडिया अगेंस्ट करप्शन (IAC) का गठन किया. आगे चलकर आईएसी ने जन लोकपाल बिल (नागरिक लोकपाल विधेयक) को लागू करने में सरकार की देरी के खिलाफ बड़ा आंदोलन छेड़ा. हालांकि यह आंदोलन अपने मुकाम तक नहीं पहुंच सका, लेकिन केजरीवाल के संघर्ष ने उन्हें दुनियाभर में लोकप्रिय बना दिया. इस आंदोलन से उनके प्रशंसकों का सैलाब सा आ गया.

अरविंद केजरीवाल ने इसके बाद उन्होंने आम आदमी पार्टी का गठन किया और सक्रिय राजनीति में उतर गए. उनकी अगुवाई में आप ने 2013 में पहली बार दिल्ली विधानसभा चुनाव लड़ा और जीत हासिल की. इसके बाद केजरीवाल कांग्रेस के साथ गठबंधन कर दिल्ली के मुख्यमंत्री बने, हालांकि यह गठबंधन ज्यादा समय तक चल नहीं पाया और केजरीवाल की सरकार 50 दिनों के भीतर गिर गई.

इसके बाद राजधानी में राष्ट्रपति शासन का दौर आया. इस बीच केजरीवाल जनता के बीच पकड़ बनाए रखने के लिए लगातार जनता के बीच जाते रहे और उनकी समस्याओं को जाना, समझा. यही वजह रही कि एक वर्ष के बाद 2015 में हुए दिल्ली विधानसभा चुनावों में केजरीवाल की आप ने बंपर जीत हासिल की. दिल्ली की कुल 70 सीटों में से 67 सीटे आप ने अकेले जीती. दिल्ली में शानदार जीत के साथ केजरीवाल सत्ता में वापस लौटे.

मुख्यमंत्री बनने के साथ ही केजरीवाल ने केंद्र की सत्ता में भी अपनी किस्मत आजमाई. लेकिन अधिक सफलता नहीं मिल सकी. साल 2019 में हुए लोकसभा चुनाव में आप केवल एक सीट जितने में सफल हुई. जबकि खुद केजरीवाल बीजेपी के दिग्गज नेता और तत्कालीन प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी से हार गए. वह पीएम मोदी के खिलाफ उत्तर प्रदेश की वाराणसी संसदीय सीट से चुनावी रण में उतरे. केजरीवाल को लोकसभा चुनावों में बीजेपी और उसके सहयोगियों के खिलाफ विपक्षी दलों को एकजुट करने का भी श्रेय जाता है.

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