Home Jharkhand घाटे का सौदा बनकर रह गया है, मधुमक्खी पालन।

घाटे का सौदा बनकर रह गया है, मधुमक्खी पालन।

कुडू – लोहरदगा : कुछ समय पहले तक लाभ का सौदा रहा मधुमक्खी पालन पालकों के लिए आज घाटे का सौदा बनकर रह गया है। क्यूंकि आज श्रम, प्रवासन, औषधियों, आहार, किराये आदि के अलावा उत्पादन लागत में हुई वृद्धि के कारण यह अब गैर-टिकाऊ उद्योग साबित हो रहा है। इसके पीछे उत्पादन लागत में हुई वृद्धि, इसके संचालन में तैनात सरकारी तंत्र की धुंधली और संकीर्ण दृष्टि या मधुमक्खी पालन के लिए कार्य कर रही संस्थाओं की निष्क्रियता कारण रही हो या फिर सभी, ये बाद की बातें हैं। पालकों को इस व्यवसाय में होने वाले नुक्सान की कोई सुध लेने वाला नहीं है। 2020 तो मधुमक्खी पालकों के लिए और भी विनाशक सिद्ध हुआ। कोरोना को लेकर देशव्यापी बंदी लॉक डाउन के दौरान में मधुमक्खी पालकों को काफी क्षति हुई। बक्सों का मूवमेंट बंद हुआ तो मधुमक्खियों के सामने भोजन का संकट आ गया, और फूल का पराग नहीं मिलने से मधुमक्खियां काफी संख्या में मर गयीं। आज स्थिति ये है कि लगभग पालकों का बक्सा आधा खाली हो चुका है। ताज़ा मामला ये है कि मध्य प्रदेश से यूपी के रास्ते बिहार जाने के क्रम में वाराणसी में लगे सड़क जाम में कई दिनों तक वाहन फंसे रहे जिससे कुडू निवासी नेसार खान के 100 बॉक्स, ओवैस खान के 100 बॉक्स, हेंजला निवासी रंजीत के 26 बॉक्स, सिंजो निवासी पंचम के 40 बॉक्स, खुर्शीद खान के भी 40- 40 बॉक्स के अलावा कुडू के कई किसानो की सारी मधुमखियां मर गयीं। लॉक डाउन से उभरे इन पालकों को दोहरी मार पड़ी है जिससे इन्हें भारी नुक्सान उठाना पड़ा है। सभी पालको को अब सरकार की मदद की आस है।

शहद के दाम में गिरावट भी नुक्सान का बन रहा है कारण

ज्यदातर मधुमक्खी पालक जानकारी के आभाव में अत्यंत नाजूक समय में निवेश करने तथा किसी आपदा के पूर्वानुमान को लगाने में असफल रहे हैं। ऊपर से मधुमक्खियों के कीटनाशकजीवों तथा रोगों के उपचार के लिए कोई सरकारी सुविधा नहीं मिलने के कारण मधुमक्खी पालक सस्ती तथा गैर-अनुशंसित व अनैतिक उपचार की विधियां अपनाते हैं। इससे उत्पादन में औषधियों की लागत बढ़ जाती है। ऐसे में मधुमक्खी पालकों के लिए अब यह व्यवसाय काफी नुकसानदेह साबित हो रहा है। इस कारोबार से पिछले दो दसकों से जुड़े कुडू निवासी नेसार खान बताते हैं कि आपदाओं के कारण कालोनियों को होने वाली क्षति की पूर्ति मधुमक्खी पालकों को अब शहद के मौसम में उत्पादन असफल हो जाने तथा वर्षा, ओला वृष्टि, आग, बाढ़ और चोरी आदि जैसी आपदाओं के कारण पहले ही बहुत क्षति होती रही है। साथ ही बड़ी कंपनियों के एजेंट भी कीमत को लेकर अलग अलग तरीकों से परेशानी बढ़ाते रहते हैं। इससे जुड़े कुडू के अन्य लोगों का कहना है कि राष्ट्रीय व राज्य स्तर पर अनेक संगठन हैं लेकिन ज़्यादतर पालकों को यह ज्ञात नहीं है कि संगठन क्या कर रहे हैं।

लॉक डाउन में भी टूट चुकी है इससे जुड़े किसानो की कमर

जानकार बताते हैं कि शहद उत्पादन के लिए अनुकूल माहौल फरवरी से मई के बीच होता है। किसान बिहार, यूपी, एमपी और पश्चिम बंगाल के विभिन्न बागानों और खेतों में मधुमक्खियों वाले बक्से लगाने जाते हैं। समय-समय पर बक्सों का स्थान बदलना जरूरी होता है, क्योंकि एक बागान से भोजन समाप्त होने पर मधुमक्खियां मरने लगती हैं। सरसों, सुरगुज्जा, लीची के खेतों के अलावा महुआ, करंज और आम के बागानों में भी बक्से रखे जाते हैं। धूप और गर्मी का भी ध्यान रखना पड़ता है। इस बार लॉकडाउन की वजह से किसान अलग-अलग बागानों-खेतों में बक्से लेकर नहीं जा पाए। आना-जाना बंद होने से सिर्फ इंसान ही बेरोजगार नहीं हुए हैं, बल्कि श्रमिक मधुमक्खियों भी जॉबलेस हो गयीं। यदि इस वयवसाय को तरक़्क़ी करते देखना है तो आज सरकार को विशेष ध्यान देकर इससे जुड़े लोगों के लाभ को सुधारने की तत्काल आवश्यकता है।

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