अमेरिकी हमले में ईरान की कुद्स सेना के प्रमुख मेजर जनरल कासिम सुलेमानी की हत्या के बाद दुनिया पर युद्ध का खतरा मंडराने की आशंका जताई जा रही थी, जो सच साबित होती दिख रही है. ईरान ने इराक में दो अमेरिकी सैन्य ठिकानों पर बैलेस्टिक मिसाइल से हमला कर दिया है. ईरान ने पुष्टि की कि उसने सुलेमानी की हत्या का बदला लेने के लिए ही ये हमला किया है और ये बस शुरुआत भर है.
अमेरिकी सांसद समेत दुनिया भर के विश्लेषक ये बात दोहरा रहे हैं कि मेजर जनरल सुलेमानी की हत्या करके अमेरिका ने ईरान के साथ युद्ध की शुरुआत खुद कर दी हैअमेरिका के पूर्व राजदूत ब्रेट मैकगर्क ने एक न्यूज चैनल को दिए इंटरव्यू में कहा कि अमेरिकियों को यह समझ लेने की जरूरत है कि हम ईरान के साथ युद्ध के चरण में पहुंच चुके हैं.
वैसे तो अमेरिका और ईरान के बीच तनाव कोई नई बात नहीं है लेकिन ईरान के सबसे अहम मेजर जनरल की हत्या के बाद मध्य-पूर्व में एक नए संघर्ष की शुरुआत होती दिख रही है. हमले की आशंका को देखते हुए ही शुक्रवार को अमेरिका ने मध्य-पूर्व क्षेत्र में 3000 सैनिक भेजने का ऐलान कर दिया था. यहां उसने पहले से ही 14,000 सैनिकों की तैनाती कर रखी है.
यूएस और ईरान के बीच का तनाव लोगों को इराक पर 2003 के हमले की याद दिला दे रहा है. हालांकि, ईरान पर हमला करना यूएस के लिए 2003 की तरह आसान नहीं होगा. विश्लेषकों का कहना है कि इस बार संघर्ष कई तरीकों से अलग है और यह पहले से खतरनाक हो सकता है. 2003 के इराक की तुलना में ईरान ज्यादा सशक्त देश है. ईरान अपने जंग लड़ने के तरीकों से अमेरिका को पस्त करने का हौसला रखता है.
ईरान इराक के मुकाबले बहुत बड़ा देश है. 2003 में अमेरिकी हमले के दौरान इराक की आबादी 2.5 करोड़ थी जबकि वर्तमान में ईरान की आबादी 8.2 करोड़ है. ईरान का क्षेत्रफल भी इराक की तुलना में करीब चार गुना ज्यादा है. एक अनुमान के मुताबिक, हमला होने से पहले इराक की सेना में 4,50,000 जवान थे जबकि हालिया सर्वे के मुताबिक ईरान के पास वर्तमान में 5,23,000 सक्रिय सैनिक और 2,50,000 रिजर्व सैनिक हैं.ईरान की भौगोलिक स्थिति भी बेहद खास है. ईरान समुद्री महाशक्ति है. ईरान के उत्तर में कैस्पियन सागर और दक्षिण में फारस की खाड़ी, ओमान की खाड़ी है. इसकी सीमाएं अफगानिस्तान, पाकिस्तान, तुर्की और इराक के साथ लगी हैं. जाहिर है युद्ध की स्थिति में ईरान अपनी भौगोलिक स्थिति का भी फायदा उठाएगा.ईरान यूरेशिया के केंद्र में स्थित है और व्यापार के लिए भी बेहद अहम है. ईरान और ओमान से घिरे होर्मूज स्ट्रेट से दुनिया के एक-तिहाई तेल टैंकर होकर गुजरते हैं. इस रास्ते का सबसे संकरा बिंदु केवल दो मील चौड़ा है. अगर ईरान इसे ब्लॉक कर दे तो वैश्विक तेल निर्यात में करीब 30 फीसदी की गिरावट देखने को मिल सकती है.
वैसे पारंपरिक सैन्य क्षमता के मामले में ईरान यूएस के आगे कहीं नहीं टिकता है लेकिन ईरान ने कई ऐसी खतरनाक रणनीतियां बनाई हैं जिससे वह मध्य-पूर्व में अमेरिकी हितों को गंभीर नुकसान पहुंचा सकता है.
ईरान के सुप्रीम नेता अयोतुल्लाह खमनेई की वफादार और नियमित सेना से अलग रिवॉल्यूशनरी गार्ड कॉर्प्स के अलावा ईरान के पास कुद्ज सेना भी है जो इराक, लेबनान और सीरिया में प्रॉक्सी सेना खड़ी करने में मदद करती रही है. वह इनकी फंडिंग भी करती है. ईरान की रिवॉल्यूशनरी गार्ड को उसकी मुख्य फौज से भी ज्यादा ताकतवर समझा जाता हैईरान ने पहले भी इस तरह के संगठनों का इस्तेमाल अमेरिकियों को निशाना बनाने में किया है. इस साल, पेंटागन के अनुमान के मुताबिक, ईरान की प्रॉक्सी फोर्स ने 2003 से 2011 के बीच इराक में करीब 608 अमेरिकी सैनिकों को मार गिराया. ईरान की प्रॉक्सी फोर्स इराक और अफगानिस्तान में फिर से उथल-पुथल मचा सकती है.
ईरान की नौसेना यूएस से ज्यादा फायदे की स्थिति में है. ईरान की नौसेना को होर्मूज खाड़ी को बंद करने के लिए बड़े जहाज या फायरपावर की जरूरत नहीं है बल्कि व्यापार को नुकसान पहुंचाने के लिए वह सबमरीन्स के इस्तेमाल से ही काम चला सकती है.ऐसी आशंका है कि ईरान स्पीडबोट सुसाइड अटैक और मिसाइल के जरिए अमेरिकी सेना को बुरी तरह पस्त कर सकता है. 2017 की ‘ऑफिस ऑफ नेवल इंटेलिजेंस’ की रिपोर्ट के मुताबिक, रिवॉल्यूशनरी गार्ड की नौसेना हथियारों से लैस छोटे और तेज रफ्तार वाले समुद्री जहाजों पर जोर देती है और फारस की खाड़ी में उसे ज्यादा जिम्मेदारियां मिली हुई हैं.इसके बाद ईरान का बैलेस्टिक मिसाइल कार्यक्रम आता है जिसे मध्य-पूर्व में मिसाइलों के जखीरे की संज्ञा दी जाती है. ईरान की मिसाइल का खतरा उसके क्षेत्र से बाहर भी मौजूद है- लेबनान आधारित प्रॉक्सी ग्रुप हेजोबुल्लाह के पास 130,000 रॉकेटों का जखीरा है.इराक में जब यूएस ने हमला किया था तो अमेरिकी सैनिकों की संख्या 150,000 थी जिसमें सहयोगी देशों के सैनिक भी शामिल थे. इराक पर हमले की आर्थिक कीमत 2 ट्रिलियन डॉलर आंकी गई थी जिसमें 2003 से 2011 के बीच करीब 400,000 लोग मारे गए थे.ईरान के खिलाफ सैन्य योजना बनाने वाले अमेरिकी अधिकारी इन पहलुओं को अच्छी तरह से समझते हैं. हालांकि, यूएस सरकार यह कहने से बचती है कि ईरान के खिलाफ सैन्य संघर्ष बेहतर विकल्प नहीं है क्योंकि इससे तेहरान पर दबाव कम हो जाएगा.
अगर अमेरिका और ईरान के बीच जारी संघर्ष जंग का रूप लेता है तो यह केवल दो देशों के बीच तक सीमित नहीं रहेगा. मध्य-पूर्व में ईरान के दुश्मन सऊदी अरब और इजरायल भी अमेरिका के साथ युद्ध में कूद पड़ेंगे तो वहीं, ईरान के साथ सीरिया, यमन और लेबनान समेत उसके दोस्त भी शामिल हो जाएंगे. यूएस का ईरान के खिलाफ सैन्य संघर्ष बहुत ही खतरनाक रणनीति साबित हो सकती है और यही वजह है कि तमाम अमेरिकी विश्लेषकों समेत पूरी दुनिया युद्ध की आशंका को लेकर चिंतित है.