लोहरदगा: जिला के विभिन्न कार्यालयों और अनुमंडल कार्यालय के कर्मियों के लिए काम के प्रति कोई जवाबदेही नहीं है।
महीनों से इन कार्यालयों में फाईलें लंबित रहती हैं, लेकिन यहां कार्यरत कर्मी सुध लेने के लिए तैयार नहीं होते। महीनों तक लोगों को टलावा देना और दौड़ाना ये अपनी शान समझते हैं। अपने काम से संबंधित कुछ भी पुछिए, बस एक ही जवाब मिलता है”हो जाएगा तीन-चार दिन में ” और वो तीन-चार दिन चार-पांच महीनों में भी नहीं आते।जरूरतमंदों को अनावश्यक शारीरिक-मानसिक और आर्थिक रूप से परेशान होना पड़ता है।
अक्टूबर 2019 में जिले के नवनियुक्त हाई स्कूल शिक्षकों का जाति और आवासीय प्रमाण पत्रों के सत्यापन हेतू जिला शिक्षा पदाधिकारी कार्यालय लोहरदगा से उपायुक्त कार्यालय लोहरदगा और अनुमंडल कार्यालय लोहरदगा भेजा गया। वहां से 4 माह गुजरने के बाद भी सत्यापन कर के प्रतिवेदन वारस जिला शिक्षा पदाधिकारी कार्यालय नहीं भेजा गया है जिसकी वजह से सैकड़ों नवनियुक्त शिक्षकों ते वेतन भुगतान में अत्यधिक लंबा समय लग रहा है। परेशान शिक्षकों को कभी विद्यालय में ड्यूटी देने के बाद इन कार्यालयों का चक्कर लगा-लगा कर थक चुके हैं।सबसे ज्यादा परेशानी शिक्षिकाओं को उठानी पड़ रही है।लेकिन सरकारी कुर्सी पर बैठे इन बाबुओं को शिक्षकों के दर्द का अहसास बिल्कुल नहीं है।यहां बताते चलें कि अनुमंडल और उपायुक्त कार्यालय में 20-25 दिन पहले ही संबंधित प्रखंडों से शिक्षकों के प्रमाण पत्रों का जांच प्रतिवेदन पहुंच गया है, लेकिन उसे जिला शिक्षा पदाधिकारी कार्यालय भेजने में कर्मियों की कोई रूचि नहीं है।उनसे बात करने से लगता है जैसे ये फ्री के काम का टेन्शन क्यों लें? उपायुक्त कार्यालय के सामान्य शाखा में कुड़ू ब्लॉक से 31 जनवरी2020 को दर्जनों शिक्षकों का जाति और आवासीय प्रतिवेदन पहुंचा, और आज तक वहीं पड़ा है। एक ही परिसर में स्थित एक कार्यालय से दुसरे कार्यालय में शिक्षकों की फाईल 25 दिनों में नहीं पहुंचती, आप अंदाजा लगा सकते हैं कि आम जनता के काम को यहां किस रूचि और गति से निबटाया जाता होगा?यही स्थिति अनुमंडल कार्यालय की भी है।यहां तो फोन कर पूछने से साफ झूट बोल दिया जाता है कि काम हो गया। वो शिक्षक जिन्हें आठ महीनों से पहला वेतन नहीं मिला है, जब 2-4 दिन बाद डीईओ ऑफिस जाकर देखता है तब पता चलता है अभी भेजा ही नहीं गया है और झूट बोलकर शिक्षकों को मूर्ख बनाया जा रहा है। आज भी कई शिक्षक-शिक्षिकाओं को डीईओ ऑफिस और अनुमंडल कार्यालय का चक्कर लगाते देखा गया।बड़ा सवाल यह है कि क्यों नही काम के प्रति ऐसे लापरवाह कर्मियों को सेवामुक्त कर दिया जाए?