भारत की इस महान भूमि पर अभी तक न जाने कितने महापुरुष पैदा हुए हैं, जिन्होंने अपने प्रतिभा से देश का नाम रोशन किया है और जिन पर हमें बहुत गर्व है। आर्यभट्ट की इस भूमि पर आज भी प्रतिभाओं की कमी नहीं है। आज हम आपको खान सर और आरके श्रीवास्तव के ऐसे ही प्रतिभावान नन्हे स्टूडेंट्स के बारे में बताने जा रहे हैं, जिन्हें (बिहार का Google Boy और Google Girl ) भी कहा जा रहा है। ये बच्चे उम्र में काफी छोटे होते हैं, लेकिन जब आप इनके बारे में जानेंगे, तो आप भी बहुत हैरान और गौरवान्वित महसूस करेंगे।
बिहार के लखीसराय जिले के एक छोटे से गाँव से आने वाले नन्हे बच्चों अंकित और शिवानी का सामान्य ज्ञान अद्भुत है। वही बिहार राज्य के रोहतास जिले का वॉन्ड़र बॉय शिवम गुप्ता अभी वर्ग 5 में है परन्तु 10 वी के प्रश्नो को करता है हल,आरके श्रीवास्तव का यह नन्हा स्टूडेंट्स वर्ग 5 में ही 10 वी के TRIGONOMETRY के सारे theory को किसी प्रोफेसर की तरह समझाता है। वही Science में किसी भी topic पर घंटो LECTURE देने की क्षमता इस नन्हें बालक में है। ये बच्चे पलक झपकते हर सवाल का जवाब देते हैं। आपको बता दें कि बिहार राज्य और अपना देश अब तक इन बच्चों के लिए पूरी तरह से अनजान थे। खान सर, जो पटना में Khan GS Research Center कोचिंग चलाते हैं, और आरके श्रीवास्तव रोहतास जिले के बिक्रमगंज में वॉन्ड़र किड्स प्रोग्राम चलाते है। जहाँ वर्ग 5 से 7 तक के स्टूडेंट्स 10 वी के प्रश्नो को हल करते है, तो वर्ग 9 से 10 वी के स्टूडेंट्स 11वी ,12वी और GRADUATION तक के गणित के पाठ्यक्रम को पढते नजर आ रहे है। आपको बता दें कि पटना में कोचिंग चलाने वाले Khan Sir और बिहार के आरके श्रीवास्तव अपने शैक्षणिक कार्यशैली के माध्यम से बहुत लोकप्रिय हो रहे हैं। आपको बताते चले की आरके श्रीवास्तव गूगल बॉय कौटिल्य पंडित के भी गुरु है।
खान सर ने अपने चैनल पर एक वीडियो साझा करते हुए सभी को इन दोनों बच्चों के बारे में बताया। बिहार के लखीसराय के एक छोटे से गाँव से आने वाले अंकित की उम्र फिलहाल केवल 7 साल है, जबकि शिवानी की उम्र सिर्फ 5 साल है, लेकिन इतनी कम उम्र में भी ये बच्चे गूगल जैसे हर सवाल का जवाब देते हैं। खान सर ने इन बच्चों से भूगोल, राजनीति विज्ञान और इतिहास के कई कठिन प्रश्न पूछे, लेकिन इन बच्चों के पास उन सभी सवालों के जवाब थे।
जब खान सर 70 समुद्रों और देश के नामों के बारे में पूछा तो इस छोटी सी दिखने वाली लड़की ने बिना रुके सभी नामों को एक साथ बताया। इसे देखकर खान सर भी दंग रह गए। जाहिर है, इतनी कम उम्र की लड़की के लिए इतने सारे नाम याद रखना आसान नहीं है।
अब आपको बताने जा रहे आरके श्रीवास्तव के वॉन्ड़र किड्स प्रोग्राम के बारे में—-
WONDER KIDS PROGRAM क्या है?
आरके श्रीवास्तव के शैक्षणिक आँगन में वर्ग 3 से स्टूडेंट्स जुङना प्रारम्भ कर देते है। प्रत्येक दिन 4 से 5 घंटे तक स्टूडेंट्स को शिक्षा दिया जाता है। प्रत्येक रविवार को सुबह 7 बजे से शाम 7 तक लगातार 12 घंटे गणित का गुर आरके श्रीवास्तव सिखाते है। इसके अलावा आरके श्रीवास्तव के द्वारा चलाया जा रहा स्पेशल नाईट क्लासेज भी देश मे चर्चा का विषय बना हुआ। अभी तक आरके श्रीवास्तव स्टूडेंट्स को सेल्फ स्टडी के प्रति जागरूक करने हेतु 450 क्लास से अधिक बार पूरे रात लगातार 12 घंटे गणित का गुर सिखा चुके है। वंडर किड्स प्रोग्राम के तहत स्टूडेंट्स सिर्फ 2 से 3 वर्षो मे 5 हजार से 7 हजार घंटे तक आरके श्रीवास्तव के शैक्षणिक आँगन मे गणित का गुर सीख चुके होते है। जब ये स्टूडेंट्स वर्ग 7- 8 मे पहुँचते है तो ये स्टूडेंट्स 11वी, 12वी के सलेब्स को पूरे कॉन्सेप्ट के साथ पढ़ चुके होते है। वर्ग 10 वी में जब ये स्टूडेंट्स जाते है तो कई बार 11 वी, 12 वी के पाठ्क्रम सहित आईआईटी प्रवेश परीक्षा के पिछले 40 वर्षों के question bank को कई बार revision कर चुके होते है।
अद्भुत, अविश्वसनीय, अकल्पनीय पढ़ाने का तरीका-
रियल लाइफ के रैंचो कहे जाते है आरके श्रीवास्तव। क्लासरूम प्रोग्राम के अलावा कचरे से खिलौने बनाकर सैकड़ों गरीब स्टूडेंट्स को गणित का गुर सिखाकर इंजीनियर बनाने वाला बिहारी जीनियस मैथेमैटिक्स गुरू फेम आरके श्रीवास्तव। खिलौने बनाकर गणित सिखाने का अद्भुत, अद्वितीय एवं अकल्पनीय तरीका है। हर बच्चे का खिलौनों से प्यार होना आम बात है। खिलौने बच्चों की आंखों में चमक भर देते हैं, ऐसे में हर माता-पिता कोशिश करते हैं कि वे अच्छे से अच्छा खिलौना लाकर अपने बच्चे के बचपन में रंग भर सकें। हालांकि आज भी ग्रामीण इलाकों में सभी परिवार अपने बच्चों के लिए खिलौने खरीदने में असमर्थ हैं। लेकिन बिहार के आर के श्रीवास्तव नाम के शख्स ने बच्चों की जिंदगी में पैसों की वजह से किसी खुशी की कमी न रह जाए, के लिए काम किया। साथ ही आर के श्रीवास्तव ने खिलौने के जरिए ग्रामीण के अलावा शहरी क्षेत्रों मे भी बच्चों को गणित पढ़ाने का एक मजेदार तरीका सोचा।
इसके लिए उन्होंने सस्ती सामग्री से नए खिलौने बनाने के तरीके खोजे और विकसित किए। स्टूडेंट्स आईआईटी प्रवेश परीक्षा के 11वी, 12 वी के गणित के कॉन्सेप्ट को खिलौने बनाकर आर के श्रीवास्तव के शैक्षणिक ऑगन मे समझते है। चाहे वह 3-d, vector के concept हो या Algebra, Trigonometry, Co-ordinate, Calculus, Geometry, Menstruation के concept हो। इन सभी के concept को आर के श्रीवास्तव Waste Material से ‘खिलौने’ बनाकर गणित के प्रश्नो को हल करना सिखाते है। बिहार के रोहतास जिला के बिक्रमगंज मे जन्मे, आरके श्रीवास्तव ने बचपन मे पिता के गुजरने के बाद गरीबी के कारण पैसो के अभाव मे अपनी पढाई वीर कुवँर सिंह विश्वविद्यालय से किया। प्रारंभिक, माध्यमिक और हाईस्कूल की भी पढाई पैसो के अभाव के चलते सरकारी विधालय से किया। उन्हें अपने शिक्षा के दौरान यह एहसास हो गया था कि देश मे वैसे लाखो-करोड़ों प्रतिभायें होगे जो महंगी शिक्षा, महंगी किताबे इत्यादि के कारण अपने सपने को पूरा नही कर पा रहे।
टीबी की बिमारी के कारण नही दे पाये थे आईआईटी प्रवेश परीक्षा। टीबी की बिमारी के कारण आईआईटीयन न बनने की टिस ने बना दिया सैकङो गरीब स्टूडेंट्स को इंजीनियर। टीबी की बिमारी के दौरान स्थानीय डॉक्टर ने करीब 9 महीने दवा खाने का सलाह दिये। उसी दौरान इन 9 महीने मे अकेले घर मे बैठे-बैठे बोर होने लगे। फिर उनके दिमाग मे आईडिया आया क्यो न आसपास के स्टूडेंट्स को बुलाकर गणित का गुर सिखाया जाये। पढ़ाने के दौरान वैसे बहुत सारे स्टूडेंट्स थे जो प्रश्न को तो हल कर लेते थे परन्तु उनके कॉन्सेप्ट आजीवन के लिए क्लियर नही हो पाते। आजीवन शब्द का इस्तेमाल इस लिये किया गया की यदि वे कुछ दिन उस चैप्टर की प्रैक्टिस छोङ दे तो जल्द वे भूल जाते थे। स्टूडेंट्स की इन कमियो को दूर करने के लिए वहां उन्होंने स्थानीय स्तर पर उपलब्ध सस्ती सामग्रियों का इस्तेमाल करके सिंपल खिलौने और शैक्षणिक प्रयोग विकसित किए।
इन खिलौनों के साथ उन्होंने स्कूलों में सेमिनार करके भी बच्चों को गणित के मूल सिद्धांतों को पढ़ाया, उन्होंने मजेदार तरीके से बच्चों को इन खिलौने के जरिए पढ़ाया। ये खिलौने को आकर्षित करते हैं और वह पढ़ने में अपनी रुचि दिखाते हैं। माचिस की तीलियों साइकल वाल्व ट्यूब, कार्ड बोर्ड के छोटे-छोटे टुकड़ों इत्यादि से लेकर बेकार कागज का इस्तेमाल करते हैं। इनसे वह सुंदर खिलौने बनाने समेत बच्चों के बीच ‘best-out-of-waste’ का आईडिया भी डाल रहे हैं। गणित के 3d Shape, ज्यमिती, क्षेत्रमिती, बीजगणित, त्रिकोणमिती सहित अनेकों गणित के कठिन से कठिन प्रश्नों को हल कर देते है। इसका मुख्य कारण है खिलौने के सहारे थ्योरी को क्लियर कर चुटकियों मे छात्र-छात्राएँ प्रश्न को हल कर दे रहे।
उन्होंने छोटे ग्रामीण गांव के स्कूलों से लेकर देश के विभिन्न राज्यो के शैक्षणिक संस्थानों तक के 1000 से अधिक बच्चों को खिलौने बनाकर गणित के प्रश्नो को हल करना सिखाया है। इनके पढाये सैकङो स्टूडेंट्स आईआईटी, एनआईटी, बीसीईसीई, एनडीए में सफलता पाकर अपने सपने को पंख लगा रहे।
आर के श्रीवास्तव के शैक्षणिक कार्य शैली के चलते इनका नाम वर्ल्ड बुक ऑफ रिकॉर्ड्स लंदन, इंडिया बुक ऑफ रिकॉर्ड, एशिया बुक ऑफ रिकॉर्डस मे दर्ज हो चुका है। दर्जनो अवार्ड से भी सम्मानित हो चुके है। बच्चों को गणित से प्रेरित खिलौने बनाना सिखाकर गणित के काॅन्सेप्ट को रूचिकर बना रहे। इनके इस जादुई तरीके से गणित पढाने की शैक्षणिक कार्यशैली पूरे देश मे चर्चा का विषय बना हुआ है। ‘खिलौने’ वाले मैथेमैटिक्स गुरू के नाम से मशहूर हो चुके है WONDER KIDS GURU आरके श्रीवास्तव।
आरके श्रीवास्तव के शैक्षणिक आँगन मे इन वंडर किड्स स्टूडेंट्स को देखने और इनसे मिलने देश के अलग-अलग कोने से लोग बिहार के बिक्रमगंज रोहतास आ चुके है। पहले तो लोगो को विश्वास नही होता की वर्ग 7 से 10 वी तक के स्टूडेंट्स ग्रेजुएशन के गणित को चुटकियों मे कैसे हल करते है। लेकिन जब इन स्टूडेंट्स से मिलकर जब इनके बैंग एव हाथो मे ग्रेजुएशन की गणित के किताबे देखते है तो चकित हो जाते है। क्लासरूम मे आईआईटी प्रवेश परीक्षा सहित ग्रेजुएशन के गणित को इन नन्हे स्टूडेंट्स के द्वारा हल करते देख सभी अतिथि आरके श्रीवास्तव के कङी मेहनत, उच्ची सोच एवं पक्का ईरादा के साथ किए जा रहे निरंतर निःस्वार्थ मेहनत के लिए सलाम करते है। आप सभी भी इन अजूबे शैक्षणिक ऑगन मे आकर इन नन्हे वंडर किड्स से मिलकर इनके प्रतिभा से रूबरू हो सकते है। यदि हिन्दूस्तान को विश्व गुरू बनाने है तो ऐसे वंडर किड्स स्टूडेंट्स का फौज तैयार करने पङेगे। यह तभी संभव होगा जब आरके श्रीवास्तव जैसे सोच शिक्षक को रखने पङेगे। सिर्फ 3 से 4 वर्षो मे 5 से 7 हजार घंटे तक गणित की शिक्षा देकर आरके श्रीवास्तव ने वर्ग 7 से 10 तक के स्टूडेंट्स को Bsc के प्रश्नों चुटकियो मे हल करने योग्य बना दिया। आरके श्रीवास्तव ने बताया की इन वंडर किड्स स्टूडेंट्स के परिश्रम के साथ साथ इनके पैरेन्टस का भी काफी सहयोग इनके अद्भुत, अद्वितीय गणितीय ज्ञान का श्रेय जाता है।