शिक्षक हुए विभागीय पदाधिकारियों की लापरवाही का खामियाजा भुगतने पर मजबूर
दुसरे जिले में हुई 2 माह बाद नियुक्ति और हो गया वेतन भुगतान
लोहरदगा:लोहरदगा जिला के नवनियुक्त हाई स्कूल शिक्षक नियुक्ति के आठ माह बीतने के बाद भी वेतन नहीं मिलने के कारण कंगाल और भारी कर्ज में डूब चुके हैं। इनकी बदतर स्थिति का अंदाजा इसी बात से लगाया जा सकता है कि अब तो राशन दुकानदारों ने भी इन्हें उधार देने से हाथ खड़ा कर दिया है। कई शिक्षकों के परिवार में मां-बाप, पत्नी या बच्चे महीनों से बीमार हैं और समुचित ईलाज के अभाव में बीमारी बढ़ती जा रही है। परिणामस्वरूप इन शिक्षकों को भयानक पारिवारिक, आर्थिक और मानसिक समस्याओं से जूझना पड़ रहा है।
झारखंड राज्य कर्मचारी चयन आयोग रांची की अनुशंसा पर लोहरदगा जिला में 20 जून 2019 को 132 हाई स्कूल शिक्षकों की नियुक्ति की गई। उनके प्रमाण पत्रों की जांच हेतु प्रत्येक शिक्षक से 1500 रू. जिला शिक्षा पदाधिकारी लोहरदगा के खाते में जमा कराए गए और विभिन्न बोर्ड-युनिवर्सिटी को डीडी बनाकर सत्यापन हेतू भेजा गया।विभागीय पदाधिकारियों और कर्मियों की लापरवाही के कारण कई जगह से डीडी वापस आ गया और प्रमाण पत्रों का सत्यापन लटकता गया।कुछ को गलत पते पर भेजा गया तो कुछ की डीडी की समय सीमा 3 माह बीत चुके थे।इसी बीच 13-14 शिक्षकों ने दुबारा स्वंय डीडी बनवाकर दौड़ धूप किये और प्रमाण पत्रों का सत्यापन करा लिए। उनको 5 महीने का वेतन भुगतान कर दिया गया। अब अधिकतर शिक्षक स्वंय ही अपने प्रमाण पत्रों के सत्यापन के लिए प्रयासरत हैं। सबसे अधिक समस्या बिहार बोर्ड वाले शिक्षकों को हो रही है। वहां से मैट्रीक या इंटर के प्रमाण पत्रों के सत्यापन के लिए शिक्षकों के स्वंय के सारे प्रयास व्यर्थ गए और जिला शिक्षा पदाधिकारी के द्वारा कोई रूचि नहीं ली गई। अब शिक्षकों को मार्च क्लोजिंग का भय सता रहा है।यदि जिला से फंड वापस हो गया तो सत्यापन के बाद भी 3-4 महीने तक उन्हें वेतन मिलना मुश्किल हो जाएगा।
तबतक इस महंगाई में परिवार का खर्च कैसे चल पाएगा। यहां यह ध्यान देने की बात है कि चतरा जिला में शिक्षकों की नियुक्ति 05 अगस्त 2019 को हुई और उनके दिसंबर तक के वेतन का भुगतान भी हो गया।ऐसे में कई प्रश्न मुंह बाए खड़े हैं कि-1.सत्यापन हेतू डीडी बनने के बाद भी जिला शिक्षा पदाधिकारी कार्यालय से 3 माह तक निर्दिष्ट बोर्ड-विश्वविद्यालयों को भेजा क्यों नहीं गया? 2. जिला कार्यालय से गलत पते पर डीडी क्यों भेजी गई? 3. इन सबकी वजह से विलंब होने के लिए जिम्मेदार कौन है? 4. जिला शिक्षा पदाधिकारी ने प्रमाण पत्रों के कोई निश्चित समय सीमा के अंदर सत्यापन के लिए कोई विशेष प्रयास क्यों नहीं किया? 5.उन्होंने अपने विशेष दूत को भेजकर जल्दी सत्यापन की व्यवस्था क्यों नहीं की जबकि पैसा उन्हीं के खाते में जमा कराया गया? और सबसे बड़ा सवाल यह है कि किसी शिक्षक के परिवार में आर्थिक संकट के कारण किसी मरीज की मौत हो गई तो इसका जिम्मेवार कौन हौगा?
इनको करमा, दशहरा, बड़ा पर्व,नववर्ष तो कर्ज लेकर गुजारने पड़े,.. अब इनकी होली का क्या होगा?