रिपोर्ट देवनारायण गंजू
28 मार्च 2021
देश की आजादी में वीर शहीद नीलाम्बर पीताम्बर के योगदान को भुलाया नही जा सकता
रांची। देश की आजादी की लड़ाई की बात हो और वीर शहीद नीलाम्बर पीताम्बर का नाम ना लिया जाए यह हो नही सकता है। आजादी की लड़ाई में इन दोनों भाईयों के योगदान को भुलाया नही जा सकता है। नीलाम्बर पीताम्बर पलामू के दो महान स्वतंत्रता सेनानी थे। जिन्होने 1857 ई की प्रथम स्वतंत्रता संग्राम में अंग्रेजों के खिलाफ विद्रोह करने में अहम भूमिका निभायी थी। नीलाम्बर पीताम्बर का जन्म 10 जनवरी 1823 ई को गढ़वा जिला के भंडरिया स्थित चेमू सेनया गांव में हुआ था। नीलाम्बर पीताम्बर दोनों सहदोर भाई थे। इनके पिता का नाम चेमू सिंह भोगता था। दोनों भाईयों ने भोगता तथा खरवार समुदाय को मिलाकर एक शक्तिशाली संगठन बनाया। पलामू जिला में चेरो तथा खरवार जाति की प्रधानता है। नीलाम्बर पीताम्बर ने अपनी शक्ति को मजबूत करने के लिए चेरो के जागीरदारों से दोस्ती की। उन्हे उनका अधिकार वापस दिलाने की षर्त पर उनका समर्थन प्राप्त किया। 21 अक्टुबर 1857 ई को दोनों भाईयों के नेतृत्व में चैनपुर, षाहपुर तथा लेस्लीगंज स्थित अंग्रेजों के कैंप पर आक्रमण किया गया। जिसमें वह काफी हद तक सफल रहे। इसी बीच अंग्रेजी सरकार को इन दोनों भाईयों के नेतृत्व की सुचना मिली। जिसके बाद उनका प्रतिरोध करने के लिए मेजर कोर्टर के नेतृत्व में इनको दबाने के लिए एक सैनिक टुकड़ी को भेजा गया। बाद में अंग्रेज सैन्य अधिकारी ग्राहम को भी सैनिक टुकड़ी के सहयोग के लिए भेजा गया। इस मजबूत अंग्रेजी फौज का सामना नीलाम्बर पीताम्बर नही कर सके और उनसे बचने के लिए मनिका के जंगल में उन्हे षरण लेनी पड़ी। दोनों भईयों ने दुबारा लोगों को अंग्रेजों के खिलाफ गोलबंद किया। उसके बाद अंग्रेजों ने 16 जनवरी 1858 को कर्नल डाल्टन के नेतृत्व में सेना को मनिका जंगल में भेजकर वहां से विद्रोहियों को खदेड़ दिया। समस्त अंग्रेजी सरकार दोनों भाईयों को पकड़ने के लिए कई बार कोशिश की लेकिन हमेषा दोनों भाईयों ने अंग्रेजों के मंसुबे को कामयाब नही होने दिया। लेकिन अंत में कर्नल डाल्टन ने दोनों भाईयों को एक भोज के अवसर पर पकड़ लिया। दोनों भाईयों के खिलाफ एक संक्षिप्त मुकदमा चलाकर उन्हे 28 मार्च 1859 को फांसी पर लटका दिया। बाद में दोनों भाईयों की संपत्ति को भी अंग्रेजी हुकुमत द्वारा जब्त कर ली गयी। महज 35 साल की उम्र में दोनों भाईयों ने स्वतंत्रता के आंदोलन में अंग्रेजों के खिलाफ विद्रोह का बिगुल फूंककर अपनी प्राणों की आहुति दे दी।