रांची : राज्य के सबसे बड़े अस्पताल रिम्स के शिशु विभाग में पिछले 60 दिनों में 178 बच्चों की मौत हो चुकी है. मौत के बाद रिम्स का शिशु विभाग आकलन करने में जुटा है कि आखिर मौत की वजह क्या है? शिशु विभाग के डॉक्टरों का कहना है कि राज्य के विभिन्न जिलों से गंभीर रूप से बीमार बच्चों को मामला बिगड़ जाने पर रिम्स भेजा जाता है.
कई बार बिना ऑक्सीजन और लाइफ सपोर्ट सिस्टम के ही परिजन दूर-दराज से बच्चों को इलाज के लिए ले आते हैं. इनमें प्री-मैच्योर बच्चे से लेकर गंभीर रोगों से पीड़ित बच्चे भी शामिल होते हैं. वैसे बच्चों का रिम्स में उचित इलाज किया जाता है. हर संभव प्रयास किया जाता है कि उनकी जान बच जाये. कई को बचा भी लिया जाता है, लेकिन कुछ की जान चली जाती है. अगर बच्चों का समय पर उचित इलाज हो, तो मृत्यु दर की आंकड़ों में कमी आ सकती है.
इसके लिए जिला स्तर के अस्पतालों में भी न्यू बॉर्न केयर यूनिट, पीडियाट्रिक इंटेंसिव केयर यूनिट (पीआइसीयू) व नियोनेटल इंटेंसिव केयर यूनिट (एनआइसीयू) की व्यवस्था करनी चाहिए.
रिम्स से मिले आंकड़े बताते हैं कि वर्ष 2019 में पूरे साल के दौरान 1051 बच्चों की मौत विभिन्न कारणों से रिम्स में हुई. इनमें प्री-मेच्योर (समय से पहले जन्मे), कुपोषण और गंभीर रोगों से पीड़ित बच्चे शामिल थे. नवंबर में सबसे ज्यादा 119 बच्चों की मौत हुई है. वहीं दिसंबर में 59 बच्चों की मौत हुई है. 17 नवंबर को रिम्स के शिशु विभाग में सबसे ज्यादा 10 बच्चों की मौत हुई है. वहीं दिसंबर में 22 दिसंबर को सबसे ज्यादा पांच बच्चों की मौत हुई है.
नवंबर में सबसे ज्यादा 119 बच्चों की मौत हुई है, वहीं दिसंबर में 59 बच्चों की मौत
17 नवंबर को रिम्स के शिशु विभाग में सबसे ज्यादा 10 बच्चों की मौत हुई
जनवरी के पहले चार िदन में आठ बच्चों की हुई मौत
रिम्स में नये साल में एक से चार जनवरी (2020) के बीच आठ बच्चों की मौत हो चुकी है. एक जनवरी को दो, दो जनवरी को तीन, तीन जनवरी को एक व चार जनवरी को दो बच्चों की मौत विभिन्न कारणों से हो चुकी है.
एक वार्मर से चार बच्चों का होता है इलाज
रिम्स में बच्चों के बेहतर इलाज के लिए स्पेशल न्यू बॉर्न केयर यूनिट, पीडियाट्रिक इंटेंसिव केयर यूनिट (पीआइसीयू) व नियोनेटल इंटेंसिव केयर यूनिट (एनआइसीयू) है. यहां गंभीर बच्चों का इलाज किया जाता है. रिम्स में तीन स्पेशल यूनिट के बाद भी बच्चों की माैत को रोकना चुनौती है, क्योंकि यहां बेड से अधिक बच्चों को भर्ती कर इलाज किया जाता है. एक वार्मर पर तीन से चार बच्चों को भर्ती कर रखा जाता है. हालांकि एक वार्मर पर एक ही बच्चे को इलाज हाेना चाहिए.
रिम्स में जो भी बच्चे आते हैं, उनमें अधिकांश रेफर होकर आते हैं. गंभीर अवस्था में आने के कारण उनको बचाना मुश्किल होता है. हमारे यहां स्पेशल केयर यूनिट तो है, लेकिन व्यवस्था और बेहतर करने की जरूरत है.
डॉ विवेक कश्यप, अधीक्षक रिम्स
राज्य ही नहीं, पड़ोसी राज्य से भी बच्चे इलाज के लिए आते हैं, जिनमें से अधिकांश गंभीर रहते हैं. हम लोगों को उन्हें बचाने के लिए समय नहीं मिल पाता है. वैसे 85.44% नवजात व अन्य बच्चों को जीवन देकर भेजा जाता है.
डॉ एके चौधरी, विभागाध्यक्ष शिशु विभाग