रांची, रिम्स में लावारिस मरीजों की देखभाल करने वाला कोई नहीं है। राज्य के सबसे बड़े अस्पताल में इनका इलाज तो दूर इन्हें खाना तक नसीब नहीं होता। नतीजा यह होता है कि पेट की भूख मिटाने को जो मिल जाए उसे ही निवाला बना लेते हैैं। बुधवार को भी रिम्स के ऑर्थोपेडिक विभाग के कॉरिडोर में मानवीय संवेदना को तार-तार करने वाला नजारा देखने को मिला।
कॉरिडोर में पड़ी एक लावारिस दिनभर वहां से गुजरने वालों से खाना मांगती रही। लेकिन किसी ने उसकी ओर देखना तक उचित नहीं समझा। जब उसे खाना नसीब नहीं हुआ तो उसने पास में बैठे कबूतर को मारकर अपना आहार बना लिया। करीब आधे घंटे तक लावारिस मरीज कबूतर के पंख नोचती रही।
गुजरने वालों को देख पेट की ओर इशारा कर मांगते हैैं खाना
प्रत्यक्षदर्शियों के अनुसार ऑर्थो वार्ड के कॉरिडोर में एक ही जगह पर सभी लावारिस मरीज पड़े रहते हैैं। न इनकी कोई देखभाल करने वाला होता है और न ही कभी कोई डॉक्टर, नर्स या रिम्स का अन्य कोई कर्मचारी इन्हें देखता है। कॉरिडोर से जाने वाले लोगों से ये खाना और भूख कहकर भोजन मांगते हैैं। नहीं मिलने पर बिलखते भी हंै। लेकिन रिम्स प्रबंधन कभी इनकी तरफ ध्यान नहीं देता।
रिम्स किचन की ओर से भी नहीं दिया जाता है खाना
लावारिसों को रिम्स में इलाज के लिए भर्ती किया जाता है। इलाज के दौरान कोई देखभाल करने वाला नहीं होता। इसलिए इन्हें वार्ड से निकालकर बाहर कॉरिडोर में छोड़ दिया जाता है। ऐसे में इन्हें भी खाना खिलाने का जिम्मा रिम्स किचन पर है। लेकिन किचन की ओर से इन्हें खाना न के बराबर दिया जाता है। कई बार तो मरीज के परिजन ही लाकर इन्हें अपना खाना दे जाते हैं।
इसके लिए जिम्मेवार सामाजिक संस्थाएं हैैं जो लावारिसों को आश्रम या विक्षिप्त को रिनपास ले जाने के बजाए रिम्स में लाकर छोड़ देते हैं। यहां साइकेट्रिक विभाग नहीं है। रिम्स प्रबंधन मानवीय संवेदना रखते हुए भी ऐसे मरीजों के लिए ज्यादा कुछ नहीं कर सकता। ऐसे मरीज रिम्स में अव्यवस्था फैलाने का काम करते हैं। डॉ. डीके सिंह, निदेशक, रिम्स।