कुडू – लोहरदगा : कुडू प्रखंड की जनता को बेहतर चिकित्सकीय सुविधा के लिए कुडू में बना वर्षों पहले बना सामुदायिक स्वास्थ केंद्र अपने अस्तित्व के लिए जूझ रहा है। दीवार में दरारें और टूटी छत और टूटा फर्स अस्पताल की बदहाली को बयां कर रहा है। वर्षों से कायाकल्प के इंतजार में अंतिम सांसें गिन रहे इस अस्पताल में चिकित्सक और कर्मचारियों के लिए बनाए गए आवास किसी भी क़ीमत पर रहने लायक नहीं है। छत और दिवार के टूट कर गिर रहे प्लास्टर की डर से 24 घंटे दूसरों की जान बचाने के लिए खड़े स्वास्थ कर्मियों की अब अपनी जान पर पड़ी है। इसके अलावा जिस भवन में चिकित्सक रोगियों को देखते हैं, वह भी बुरी तरह जर्जर हो चुका है। यहां के हालात देखकर ताज्जुब होता है कि जब चारों तरफ विकास की होड़ लगी है, थाना भवन, प्रखंड सह अंचल कार्यालय, स्कुल भवन मॉडल बन गए। यहां तक कि आंगनबाड़ी केंद्रों को भी मॉडल बनाया जारहा है तो कुडू प्रखंड के लिए स्थापित इकलौते सामुदायिक स्वास्थ्य केंद्र के प्रति जनप्रतिनिधियों मे और विभागीय उच्चाधिकारियों में गंभीरता क्यूं नही? कहते हैं कि पौष्टिक भोजन स्वच्छ वस्त्र तथा साफ़ सुथरा आवास मानव की कार्यछमता एवं जीवन को सुचारू रूप से सक्रीय रखने के लिए न्यूनतम एव वांछनीय आवश्यकताएं होती हैं और इनकी उपलब्धि नितांत आवश्यक है। लेकिन लाख प्रगति के बावजूद भी अस्पताल कर्मियो को अच्छे आवास की वयवस्था उपलब्ध नहीं होना। सामुदायिक स्वास्थ्य केंद्र कुडू के अस्तित्व पर सवालिया निशान खड़े हो गए हैं। जो जन प्रतिनिधियों व उच्चाधिकारियों की उदासीनता को दर्शाता है। बताते चलें कि 2011 की जनगणना के अनुसार 14 ग्राम पंचायत के 65 गांव में लगभग 98490 जनंसख्या वाले कुडू प्रखंड को यह अस्पताल स्वास्थ्य सुविधाएं उपलब्ध कराता है। साथ ही ऐसे स्थान पर स्थित है जहां राष्ट्रीय राजमार्ग 75 और 39 एक दूसरे को क्रास करते हैं। इस रूट से बिहार, छत्तीसगढ़ के लिए प्रतिदिन हज़ारों वाहन गुज़रते हैं। इस कारण ट्रैफिक का भारी दबाव रहता है। इस मार्ग पर आये दिन छोटी बड़ी दुघर्टनायें होती रहती है। इसके अलावा यहां रोज़ाना करीब 150 लोगों का इलाज किया जाता है। चारों ओर दूर-दूर तक कोई अच्छा अस्पताल भी नहीं। इन सब कारणों से कुडू का यह सामुदायिक स्वस्थ केंद्र बेहद महत्वपूर्ण है। यहां के समस्त स्टाफ बहुत ही सतर्क तथा संवदेना पूर्ण ढंग से रहते हुए टूटी फूटी सुविधा के साथ ही अपने दायित्वों का उचित निर्वहन करते रहते हैं। अब चिकित्सकों व कर्मचारियों को मौजूदा सरकार से रहने लायक आवासीय व्यवस्था उपलब्ध होने की उम्मीद है।
गिनीज़ बुक में दर्ज होने लायक है यहाँ के कर्मचारी आवास।
स्वास्थ्य कर्मियों के रहने के लिए बना आवास शायद हिंदुस्तान का पहला भवन होगा जहां ढलाई वाली छत के ऊपर एसबेस्टर बिछाया गया हो। ढलाई टूटी एसबेस्टर लिक हुआ तो वर्तमान में यहां रह रहे कर्मचारियों ने देशी जुगाड़ का सहारा लेकर छत के निचे और छत के ऊपर प्लास्टिक बिछाकर पानी और टूट कर गिर रहे प्लास्टर से अपनी और अपने परिवार की हिफाज़त कर रहे हैं। इस अस्पताल के जीर्णोद्धार के लिए अस्पताल कर्मियों ने कई बार आवाज उठाई। यहां की स्वास्थ सेवाओं का हाल जानने निति आयोग भारत सरकार की निदेशक डॉ० सुधा चौधरी के नेतृत्व में 3 नवंबर 2015 को दिल्ली से आई कॉमन रिव्यू मिशन ( सिआरएम ) की टीम ने भी अस्पताल भवन की खस्ताहाली की रिपोर्ट सरकार को भेजी। इसके आलावा भी कई बार केंद्रीय और राज्य स्तर की टीमो ने निरिक्षण लेकिन आज तक कोई भी फंड चिकित्सकों और कर्मचारियों के आवास के लिए आवंटित नहीं हुआ। और न ही कोई मरम्मत कार्य हो पाया। और बार बार हुई उपेक्षा के चलते इसकी स्थिति बद से बदतर होती चली गई। दुखद पहलू ये है कि आज भी इस अस्पताल के जीर्णोद्धार के प्रति न तो स्वास्थ्य विभाग और ना ही क्षेत्र के जनप्रतिनिधियो को फ़िक़्र है।