मेयर जैसे संवैधानिक पद पर बैठी आशा लकड़ा को जानकारी का अभाव है उन्होंने मालूम होना चाहिए कि उर्दू शिक्षक कोई अनुबंध कर्मचारी नही है, बल्कि सरकारी शिक्षक है जो स्कूलों में शैक्षणिक कार्य करते है और कोविड महामारी में ड्यूटी भी कर रहे है , जिस प्रकार सरकार सभी सरकारी कर्मियों को वेतन देती है उसी प्रकार 689 उर्दू शिक्षक के लिए वेतन देने के प्रस्ताव पर स्वीकृति सरकार ने दिया है। लेकिन मेयर इसे समुदाय विशेष के खिलाफ़ धार्मिक रंग देकर मुख्यमंत्री के खिलाफ़ अमर्यदाति भाषा का प्रयोग कर रही जो बिलकुल अनुचित है।
झारखंड छात्र संघ के अध्यक्ष एस अली ने कहा कि
मेयर आशा लकड़ा को यह बताना चाहिए की कोरोना पीड़ितों की सहायता करने के लिए रांची नगर निगम ने अपने कर्मचारियों को वेतन नही दिया या फिर मेयर ने खुद कोवीड सहायता के लिए अपना वेतन और भत्ता नही ले रही है।
सच्चाई तो यह है कि कोविड महामारी में रांची नगर निगम के मेयर को जो कार्य करना चाहिए था वो नही कर सकी अब नाकामियों को छुपाने के लिए उलूल जुलूल बयान बाज कर रही है।
मयेर आशा लकड़ा को जवाब देना होगा कि कोविड महामारी में सभी वार्डों के गली मुहल्लों में सेनीटाइज और साफ सफाई क्यों नही किया गया।